उज्ज्वल भविष्य की नींव आपके आँगन में!
चन्द्रशेखर संगोई
simplewords48@gmail.com
यह घटना
उस समय की है जब मेरी उम्र लगभग 9 वर्ष की थी। मैं अपने ननिहाल में घर के बाहर खेल
रहा था और वहीं पास के रास्ते से एक व्यक्ति जा रहे थे, जो कि मेरे ही गाँव के
रहने वाले थे। रास्ते मे मुझे देखकर उन्होने मुझसे कहा, कैसे हो चंद्रशेखर? “मैं ठीक हूँ”,
मैंने जवाब दिया। इतना सुनने के बाद उन्होंने अपनी यात्रा जारी रखी और
वहाँ से चले गए। वे निकले ही थे कि मेरे बड़े भाई (मामा जी के
लड़के) मेरे पास पहुँचे और उन्होंने पूछा कि जो सज्जन थोड़ी देर
पहले तुमसे बात करते हुए यहाँ से गुजरे वह कौन थे? मैंने कहा,
“मेरे ही गाँव के एक व्यक्ति थे”। क्या तुमने उनसे
पानी के लिए पूछा? मैंने कहा, “मैंने नहीं
पूछा”। इतना सुनते ही उन्होंने मुझे डाँट लगाई और कहा कि,
क्या तुम इतना भी नहीं जानते कि कोई परिचित हमारे घर के पास से गुजरे
तो उन्हें कम से कम बिना पानी पिलाये नहीं जाने देना चाहिए? मैंने
“न” के इशारे में अपनी गर्दन हिलायी।
मेरे भोलेपन को देखकर, भैया हल्के से मुस्कुराये। उन्होने
अपना गुस्सा शांत किया और मधुर वाणी में बोले कि, एक व्यक्ति
का दूसरे के प्रति प्रेम एवं सम्मान ही मानवता है। उस समय मैं उनके इन शब्दो, “प्रेम एवं सम्मान” का अर्थ
समझ नही पाया। समय के साथ में उन अर्थो को समझ पाया लेकिन किसी की ड़ाँट फटकार या
समझाने से नहीं लेकिन मेरे आस-पास के परिवेश में ऐसा व्यवहार लगातार देखते रहने के कारण।
इस
तरह की व्यवहारिक घटनाओ ने मुझे सिखाया की कोई भी परिचित या अपरिचित व्यक्ति यदि हमारे
संपर्क में आता है तो उस व्यक्ति को आदर, प्रेम एवं सम्मान देना हमारा प्रथम कर्तव्य है। यही हमारे
मनुष्य होने का प्रथम प्रमाण है।
मेरा
मानना है कि, जब हम यही आदर, प्रेम एवं सम्मान पृथ्वी पर उपस्थित समस्त
जीवो के प्रति दर्शाते हैं, जिनमें की पेड़ पौधे भी शामिल हो,
तब मनुष्यता अपनी पराकाष्ठा पर पहुंचती हैं। मनुष्य अपने परम लक्ष्य
पर पहुँचता है।
लेकिन
मनुष्यता के ये गुण, कोई भी व्यक्ति न तो किसी एक घटना से सीख सकता और न ही इस तरह के उद्देश्यों
को बार-बार दोहराने मात्र से।
किसी
भी बीज के लिए, जब तक अनुकूल परिस्थितियाँ उत्पन्न न की जाए उसका अंकुरण सम्भव नहीं हो
सकता। उचित समय, मिट्टी, वातावरण एवं
उचित मात्रा में खाद, पानी उपलब्ध होने पर ही उसका अंकुरण
सम्भव होता है। किसी एक की भी कमी होने पर या तो बीज अंकुरित नहीं होगा या सड़
जाएगा। और जब तक अंकुरण सम्भव न हो तब तक उससे फल की इच्छा रखना भी मूर्खता है।
इसी प्रकार किसी भी व्यक्ति में मानवता के बीज का अंकुरण सम्भव है।
मानवता
के बीज के अंकुरण के लिए बचपन ही उचित समय हे, जब वह संसार से पूर्ण रूपेण
अनभिज्ञ रहता है। उचित वातावरण घर पर माता-पिता द्वारा बनाया जाता है। उचित खाद, पानी है, माता-पिता का स्वयं का व्यवहारिक जीवन।
बचपन
का सर्वश्रेष्ठ उपयोग, माता-पिता द्वारा बच्चे के लिए बनाए गए ऐसे परिवेश
द्वारा किया जा सकता है, जिसमें बच्चा प्रेम, करूणा, सब जीवो के प्रति सम्मान व समर्पण का भाव,
आत्मनिर्भरता एवं जीवन जीने की कला सीख सके। कोई किताब वह नहीं
सीखा सकती, कितनी ही ड़ाँट वह नहीं सीखा सकती जो कि
माता-पिता अपने बच्चे को स्वयं के व्यवहार में दिखाकर सिखा सकते हैं।
क्या
यह संभव है कि -
आप
धुम्रपान करतें रहें और आपका बच्चा बड़ा होकर नशे का आदि न बने?
आप
पड़ोसी से लड़ें और आपका बच्चा शांत प्रकृति का बनें?
आप
घर पर सारे जग की बुराई बच्चे के सामने करते रहें और आपका बच्चा दुसरों से प्रेम
रखें?
आप
पेड़ काटते रहें और आपका बच्चा पर्यावरण प्रेमी बनें?
आप
जानवरों को मारकर खाते रहें और आपका बच्चा हिंसक न बनें?
आप
मंदिर जाएँ केवल माँगने के लिए और आपका बच्चा ईश्वर में सच्ची आस्था रखे?
आप अपने
माता पिता का तिरस्कार करें और आपका बच्चा बुढ़ापे में आपका सहारा बनें?
प्रत्येक बच्चे में असीम संभावनाएँ हैं, मनुष्यता की पराकाष्ठा
तक पहुँचने की, सचिन तेंदुलकर, किरण बेदी,
कल्पना चावला, स्वामी विवेकानन्द, डॉ० कलाम, डॉ० जगदीशचन्द्र बसु, आर्यभट्ट, सुश्रुत, रामानुज, कालीदास, कबीर या किसी
अन्य जैसा एक जागृत और कर्मठ व्यक्ति बनने की। कुछ बच्चे गलत दिशा में शिक्षा
पाकर हिंसक बन जाते हैं, तो कुछ नशे के आदि होकर अपना जीवन
पशु समान बिताने को विवश हैं। इसके विपरित आप सही शिक्षा देकर आपके बच्चे का उज्ज्वल
भविष्य की नींव खड़ी कर सकते हैं, बशर्ते आप का व्यवहार
आपने उसी कोटि का कर लिया हो।
क्या
आप पहले स्वयं पर इतना कार्य करने के लिए, स्वयं को इतना बदलने के लिए, इतना
त्याग करने के लिए तैयार है?
आपको
तैयार होना ही होगा, यही एकमात्र उपाय है मानवता
एवं पृथ्वी को बचाने का।
अन्यथा
पृथ्वी पर भीड़ यूँ ही बढ़ती रहेगी, जंगल यूँ ही नष्ट होते रहेगें, जानवर यूँ ही मरते रहेगें मनुष्यता यूँ ही गर्त में जाती रहेगी और एक दिन
पृथ्वी रहने लायक न बच पाएगी।
पृथ्वी
एवं मानवता को कोई एक व्यक्ति नहीं बचा सकता, सबको साथ आना होगा। सबको अपनी-अपनी
जिम्मेदारी निभानी होगी। यही एक रास्ता बचा है। अन्यथा विज्ञान भी हमको नहीं बचा
पाएगा, चाहे वह कितनी ही उन्नति क्यों न कर ले।
हमें पहले स्वयं में मानवता जागृत करनी होगी। कर्म में निस्वार्थ भाव, व्यक्तित्व में प्रेम, आचरण में सम्यकता, दृष्टि में प्रत्येक जीव के लिए समानता, उपभोग में जागरूकता और जीवन में समरसता लाना ही उद्देश्य बन जाए। यही से एक नई पीढ़ी की शूरूआत होगी, जो कि अपने इन्ही गुणों को आने वाली पीढ़ीयों में प्रसारित कर एक सुंदर भविष्य के निर्माण की नींव रखेगी।
👌👌👌
ReplyDeleteThanks for the compliment.
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बहुत बढ़िया आपकी सक्रियता समाज के लिए सार्थक सिद्ध होगी।
ReplyDelete👏👏👏👏
ReplyDeleteThanks for the comment.
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Bahut achha lekh hai bhaiya
ReplyDeleteSandaar shekhar bhai
ReplyDeleteसराहनीय
ReplyDeleteGreat..keep it up
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Lajavaab h bade bhaiyya
ReplyDeleteNice brother
ReplyDeleteThank you
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Bahut shandar bhaisahad apka lekh prernadayak h 🙏🙏🙏
ReplyDeleteबहुत शानदार पटवारी जी
ReplyDelete🙏🙏🙏🙏🙏
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👍👌👌
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteशानदार पटवारी साहब
ReplyDeleteIsiliye to aap mere guruji h bhaiya
ReplyDeleteBahut Khub
ReplyDeleteThanks for the compliment.
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बढ़िया अति उत्तम
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