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Showing posts from August, 2020

Decoding Happiness: Ice cream cannot make you happy

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  -Pratik Badgujar 4 minute read It does not take a genius to say that we all become happy and sad numerous times. For most of us, happiness giving moments are very few, and the remaining time is filled with frustration and boredom. We all want to be happy. We all do everything we do for the sole reason of becoming happy in life and yet we don't succeed a lot. What is this mystery? Why can't we live happily ever? Can we?   In this series of articles , “Decoding Happiness” we will try to understand the reality of happiness. + In this series of articles we will shed some light on different aspects of happiness one by one. This is the first article of them We want to make these articles a learning experience. We want you to freely communicate your thoughts on happiness and article with us. So, freely comment, give feedback, write an email, or contact us on Whatsapp. Rest assured we are not here to judge you from your comments at all. Let's Get started...    Ice Cream

बदलाव तो होकर रहेगा

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  चन्‍द्रशेखर संगोई रक्षाबंधन की छुट्टियों में मित्र रोहन से लगभग छह महीनों बाद मुलाकात हुई। पिछली बार हम उसके जन्मदिवस के अवसर मिले थे तब उसने वहाँ उपस्थित सभी मित्रों से यह वादा किया था कि आज से वह अपने जीवन में बहुत से परिवर्तन लाने वाला है। सुबह दौड़ने जाना, समय का पाबंद रहना, जंक फूड पर निर्भर नहीं रहना, सोशल मीडिया पर कम समय बिताना, रात को जल्दी सोना, धूम्रपान छोड़ना जैसे  10 बड़े बदलाव अपने जीवन में जन्म दिवस के के मौके पर लागू किये थे। रोहन अपने संकल्प का पक्का है, अतः मुझे विश्वास था कि वह अपने जीवन में कियेे गए बदलावों पर खरा उतरेगा। परंतु उस मुलाकात के दिन उसने बताया कि उन सभी बदलावों में से एक भी बदलाव पूर्ण रूप से अपने जीवन में लागू नहीं कर पाया था। परंतु क्यों? आप भी अपने जीवन में ऐसी कई आदतों को बदलना चाहते होंगे जो कि आपको भविष्य में कोई लाभ दें, परंतु उनको व्यवहारिक जीवन में नहीं उतार पाते। ज्यादातर लोग अपने जन्म दिवस, नव वर्ष, अथवा सालगिरह पर ऐसी कई आदतों को अपने जीवन में उतारने के लिए संकल्प लेते हैं। एकाएक ही जीवन में आदतों के उन परिवर्तनों को लागू कर भी देते हैं।

मानवीय मुल्‍योे के निर्माण में माता-पिता का योगदान।

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 चन्‍द्रशेखर संगोई भारत सरकार नई शिक्षा नीति लाने की कवायद में लगी हुई है। नई शिक्षा नीति में 10+2 के स्थान पर 5+3+3+4 लागू होगा। इससे पहले 1986 में आखरी बार शिक्षा नीति को बदला गया था। आधुनिक परिवेश एवं विकसित तकनीकी की जानकारी के साथ सामंजस्य स्थापित करने के लिए यह अत्यंत आवश्यक भी है।   प्रत्येक देश अपने वर्तमान परिदृश्य के अनुरूप अपनी शिक्षा नीति को बदल कर आधुनिक एवं सार्थक तरीकों से अपने लोगों को शिक्षित करता है , ताकि वह और अधिक विकसित मानवीय मूल्‍यो की नींव रख सके। समय - समय पर इन बदलावों के साथ हमने टेक्नोलॉजी , प्रति व्यक्ति आय , सुख - सुविधा में बढ़ोतरी भी की परंतु मानवीय मूल्‍य उतनी ही तेजी से विकसित नहीं हुए। जिसका यह परिणाम है कि सम्‍पूर्ण संसार की अधिकतम आबादी स्‍वार्थी हो गई है। कोई भी व्यक्ति अपनी नई पीढ़ी को तकनीकी रूप से आधुनिक एवं अधिक आय संपन्न होने के सपने तो पूरे होते देखता है , परंतु उसी अनुपात में उनमें मानवीय मूल्‍य विकसित होते हुए