बदलाव तो होकर रहेगा
चन्द्रशेखर संगोई
रक्षाबंधन की छुट्टियों में मित्र रोहन से लगभग छह महीनों बाद मुलाकात हुई। पिछली बार हम उसके जन्मदिवस के अवसर मिले थे तब उसने वहाँ उपस्थित सभी मित्रों से यह वादा किया था कि आज से वह अपने जीवन में बहुत से परिवर्तन लाने वाला है। सुबह दौड़ने जाना, समय का पाबंद रहना, जंक फूड पर निर्भर नहीं रहना, सोशल मीडिया पर कम समय बिताना, रात को जल्दी सोना, धूम्रपान छोड़ना जैसे 10 बड़े बदलाव अपने जीवन में जन्म दिवस के के मौके पर लागू किये थे। रोहन अपने संकल्प का पक्का है, अतः मुझे विश्वास था कि वह अपने जीवन में कियेे गए बदलावों पर खरा उतरेगा। परंतु उस मुलाकात के दिन उसने बताया कि उन सभी बदलावों में से एक भी बदलाव पूर्ण रूप से अपने जीवन में लागू नहीं कर पाया था। परंतु क्यों?
आप भी अपने जीवन में ऐसी कई आदतों को बदलना चाहते होंगे जो कि आपको भविष्य में कोई लाभ दें, परंतु उनको व्यवहारिक जीवन में नहीं उतार पाते। ज्यादातर लोग अपने जन्म दिवस, नव वर्ष, अथवा सालगिरह पर ऐसी कई आदतों को अपने जीवन में उतारने के लिए संकल्प लेते हैं। एकाएक ही जीवन में आदतों के उन परिवर्तनों को लागू कर भी देते हैं। परंतु वे 2 दिन, 4 दिन, 1 सप्ताह के अंदर, उन सभी परिवर्तनों से धीरे-धीरे पीछे हटते हुए पुनः पुरानी आदतों पर लौट आते हैं। ऐसा होने पर वे यह विश्वास कर लेते है कि इन परिवर्तनों को व्यवहारिक जीवन में उतारना उनके बस का काम नहीं। जीवन में कोई भी परिवर्तन लाने के लिए "परिवर्तन" को गहराई से समझना आवश्यक है।
परिवर्तन प्रकृति का आधार है।
श्रीमद्भागवत गीता में श्री कृष्ण कहते हैं कि परिवर्तन ही संसार का नियम है। यदि इस प्रकृति में कोई चीज़ स्थाई है तो वह "परिवर्तन" है। प्रतिक्षण प्रकृति में करोड़ों परिवर्तन होते हैं। कुछ परिवर्तन इतने सूक्ष्म होते हैं कि वे हमारी आंखों द्वारा दिखाई ही नहीं देते। इस प्रकृति में कुछ भी ऐसा नहीं है जो स्थाई है। ग्रह, द्वीप, पर्वत, समुद्र, नदी, सभ्यताएं, प्रजातियां कोई भी स्थाई नहीं है। हर एक निरंतर परिवर्तन के दौर से गुजरते हुए उत्पन्न और विनाशित होते हैं।
बुद्धि परिवर्तनों की विरोधी है।
परिवर्तन आप स्वयं पर लागू करें या बाहर से आरोपित हों, मनुष्य बुद्धि परिवर्तन की घोर विरोधी होती है। वह अधिकांशतः परिवर्तन का विरोध ही करती है, भले ही वे परिवर्तन सकारात्मक परिणाम भी पैदा क्यों ना करें। परिवर्तन अनिश्चितता पैदा करता है जबकि बुद्धि स्थायीत्व चाहती हैं। सुबह उठने के समय में, रात को सोने के समय में, ऑफिस के समय में, ऑफिस की जिम्मेदारियों में अथवा अन्य कोई परिवर्तन हो, आपके अंदर इनके प्रति विरोधाभास जरूर उत्पन्न होता है। जो बच्चे शुरुआत में स्कूल जाने में आनाकानी करते हैं वे स्कूल में अन्य बच्चों के साथ गहरी मित्रता हो जाने के बाद छुट्टियों का विरोध करते हैं। आलसी प्रवृत्ति वाला व्यक्ति कार्य करने का विरोध करता है। अधिक काम में डूबा हुआ व्यक्ति बिना काम के नहीं रह सकता, वह छुट्टियों का भी विरोधी हो जाता है। अत्यधिक अनुशासित जीवन जीने वाला व्यक्ति बच्चों को खेलता देख भी असहज महसूस करता है। अनुशासनहीन व्यक्ति किसी भी अनुशासित स्थान या व्यक्ति से दूर ही रहना पसंद करता है, ताकि उसे अनुशासन स्वयं में ना लाना पड़े।
परिवर्तन से डरे नहीं, उसे स्वीकार करें।
बाहृय प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करने के लिए आपको परिवर्तन को स्वीकार करना सीखना होगा। एक स्थान पर ठहरा हुआ पानी जल्द ही खराब हो जाता है जबकि बहता हुआ पानी हमेशा निर्मल बना रहता है। हमारे जीवन में भी परिवर्तन का ही यही महत्व है। बाहरी समाज, टेक्नोलॉजी, जीवन की अवस्थाओं, कार्यक्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए कौशल आदि के बदलाव के साथ सामंजस्य स्थापित करने के लिए हमारे अंदर भी बहुत से परिवर्तन करना आवश्यक हो जाता है। अतः परिवर्तनो सेे ड़रे नहीं, परिवर्तनों के लिए स्वीकार भाव अपने मन में पैदा करें। कोई भी परिवर्तन यदि अंत में आपको कुछ लाभ देने वाला हो तो उस अंत को ध्यान में रखकर शुरुआत करें।
परिवर्तन धीमी मगर लगातार होने वाली प्रक्रिया।
प्रकृति में होने वाले प्रत्येक परिवर्तन की यह विशेषता है कि वह धीमे-धीमे एवं लगातार होता है। हमारे शरीर की अवस्थाएं भी इसी प्रकार धीमे-धीमे एवं लगातार बदलती हैं। हम नवजात बच्चे से किशोर, किशोर से जवान और जवान से वृद्ध हो जाते हैं परंतु शरीर में हुए किसी भी परिवर्तन को घटित होते नहीं देख सकते। जापान दो परमाणु बम एवं लगातार भूकंप झेलने के बाद भी बहुत समृद्ध राष्ट्र है। जापान में एक सिद्धांत प्रचलित है जिसे "काइज़न" कहते हैं। काइज़न का शाब्दिक अर्थ है "निरंतर सुधार"। जापान का प्रत्येक नागरिक इसी दर्शन के अनुसार स्वयं में सुधार करता है। जापानी कंपनियों ने इस सिद्धांत को अपनाया और अपार सफलता प्राप्त की। काइज़न सिद्धांत काॅर्पोरेट जगत में भी बहुत विख्यात है जिसका उपयोग ऊपरी प्रबंधन से लेकर निचले कर्मचारियों तक की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए किया जाता है। आप भी अपनेे जीवन में परिवर्तन प्रकृति के इस नियमानुसार ही करें। अपनी आदतों में किसी भी परिवर्तन को इसी प्रकार धीमी गति से जीवन में उतारे। बहुत सारे परिवर्तन एक साथ ना करते हुए एक-एक परिवर्तन जीवन में उतारें और यह प्रक्रिया लगातार चलने दें। यही तरीका आप दूसरों के जीवन में परिवर्तन लाने के लिए भी अपना सकते है। कई बार आप किसी पारिवारिक सदस्य की उन्नति के लिए उनके जीवन/आदतों में परिवर्तन लाने की कोशिश करते हैं, तो वे भी इन परिवर्तनों के विरोधी हो जाते हैं। अतः आगे से उनमें कोई भी परिवर्तन देखना चाहते हैं तो उन्हें अत्यंत ही धीमी गति से परिवर्तित करें और परिवर्तन को लगातार जारी रखें। कभी-कभी एक आदत बदलने में भी महीनों लग सकते हैं।
परिवर्तन किसी विशेष समय पर नहीं होता, वह तो लगातार जारी रहने वाली प्रक्रिया है। जन्मदिन, नव वर्ष, शादी की सालगिरह अथवा अन्य किसी विशेष मौके पर एकाएक परिवर्तनों को लागू करने की अपेक्षा सृजनात्मक तरीके से लगातार अपनी एक-एक आदत/कौशल में परिवर्तन करना जारी रखें।
( काइज़न के बारेे में अधिक जानने के लिए इस लिकं पर जाएं https://www.youtube.com/watch?v=EVt34ED1lNs )
बिल्कुल सत्य है।आजकल के मानव को काम की टेंशन लेने की ऐसी आदत हो गयी है कि उसे कुछ चुटकुले भेजो तो भी वह नीरस ओर ज्यो का त्यों टेंशन में बना रहता है।पसंद ही नही है कि कुछ परिवर्तन लाये जीवन में।
ReplyDeleteधन्यवाद
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बदलाव होकर रहेगा..👍
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👍
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