मनुष्य और उपभोग
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कोरोना
महामारी
के
इस
समय
में
जब
हम
घर
से
बाहर
नहीं
निकल
पा
रहे
हैं और अपना
समय
निकालने
के
लिए
विभिन्न
उपाय
कर
रहे
हैं
कुछ
समय
से
मुझे
भी
बहुत
फोन
आ
रहे
हैं। जब
बात
लंबी
हो
जाती
है
और
मैं
कहता
हूं
कि
फोन
रखा
जाए
तो
दूसरी
ओर
से
जवाब
आता
है
बात
करने
में
क्या
दिक्कत
है
पैसा
कहां
लग
रहा
है
फोन
फ्री
ही
तो
है!
लेकिन क्या
वाकई
में
फोन
फ्री
है?
क्या
महीने
भर
का
रिचार्ज
हम
महीने
के
शुरुआत
में
ही
नहीं
कर
रहे?
यह
है
उपभोक्तावाद
की
शक्ति।
हम
पैसा
भी
खर्च
कर
रहे
हैं
और
जो
समय
किसी
निश्चित
वस्तु
के
उपभोग
के
लिए
नहीं
देना
चाहिए
वह
समय
भी
दिया
जा
रहा
है
और
फिर भी हमें
लग
रहा
है
कि
सब
कुछ
फ्री
मिल
रहा
है।
घर
पर
बिना
काम
के
बैठे
हुए
यदि
हम
सूक्ष्म
निरीक्षण
करें
एवं
गहराई
से
सोचें
तब
शायद
आप
पाएंगे
कि
लाॅकडाउन
के
पहले
जिन
दैनिक
वस्तुओं
का
आप
उपभोग
कर
रहे
थे;
शायद
उनमें
से
बहुत
सी
वस्तुएं
ऐसी
थी
जिनकी
या तो आपको
जरूरत
नहीं
थी
या
कम
जरूरत
होने
पर
भी
आप
अत्यधिक
मात्रा
में
उनका
उपभोग
कर
रहे
थे।
हमारी आवश्यकता
से अधिक
उपभोग करवाना
अत्यधिक आवश्यकताएं
निर्मित करना
एवं फिर
उनको पूर्ण
करवाने के
लिए हमें
दिन-रात
मेहनत करवाना
यही उपभोक्तावाद
हैं।
हमारे
मन
में
हमेशा
ऊंचा
उठने
की,
कुछ
नया
पाने
की
जिज्ञासा
बनी
रहती
है।
आंखों
को
अच्छा
देखना
पसंद
है,
त्वचा
को
अच्छा
छूना
पसंद
है,
जीभ
को
अच्छा
खाना
पसंद
है, नाक को अच्छी सुगंध पसंद है एवं कान को अच्छा सुनना पसंद है। हम एक साधारण मानव होते हुए भी स्वयं को किसी महामानव से कम नहीं समझते। हमारा अहंकार हमें स्वयं महामानव होने की बात कहता रहता है। और जब भी हमे लगता है कि कहीं कमी आ रही है महामानव बनने में, तब हम भौतिकता का सहारा लेकर उस कमी के अहसास को पूर्ण करने का प्रयास करते रहते हैं।
हमारे इसी अहंकार
को
संतुष्ट
करने
का
बेड़ा
उपभोक्तावाद
ने
उठाया
और
यही
कारण
है
कि
हम
पश्चिमी
सभ्यता
की
ओर
खींचे
चले
गए। स्वयं
को
अंदर
खोजने
की
बजाय
बाहरी
आवश्यकताओं
को
पूरा
कर
अहं
को
संतुष्ट
कर
स्वयं
को
महामानव
बनाने
की
कोशिश
लगातार
कर
रहे
हैं।
मां
प्रकृति
के
पास,
जैसा
कि
महात्मा
गांधी
ने
कहा
है,
हमारी
आवश्यकताएं
पूरी
करने
के
लिए
तो
संसाधन
हैं
लेकिन,
हमारा
लालच
पूरा
करने
के
लिए
नहीं।
आवश्यकता एवं
चाह के
अंतर को
आप को
समझना होगा।
उपभोक्तावादी
शक्तियों
ने
हमेशा
आपको
आवश्यकताएं
बढ़ाने
के
लिए
प्रेरित
किया
है
एवं
आपकी
अधिकांश
चाह
को
आवश्यकता
में
रूपांतरित
कर
दिया
है।
अब
उन
रूपांतरित
की
गई
आवश्यकताओं
को
पूरा
करने
के
लिए
आप
दिन
रात
मेहनत
करते
हैं
एवं जब इसके
बावजूद
भी
यह
पूरी
नहीं
हो
पाती
तब
उसके
दु:ख से उभरने के उपाय हेतू
फंतासी
दुनिया का निर्माण भी इन्ही उपभोक्तावादी
शक्तियों
ने
किया
है।
मनोरंजन
की
विस्तृत
दुनिया
भी
दरअसल आपको
उलझाए
हुए
रखने
का
एक
साधन
मात्र
है।
अवधारणाएं
ऐसी
भी
है
की
यदि
उपभोक्तावाद
नहीं
रहा
तो
मानव
गरीब
ही
बना
रहेगा,
वह
सुख
संसाधन
कैसे
जुटा
पाएगा,
गरीबी
कैसे
दूर
होगी।
लेकिन यदि
वाकई
में
ऐसा
है
तो
फिर
दुनिया
की
लगभग
99% संपत्ति
चंद
लोगों
के
पास
ही
क्यों
हैं?
दुनिया
में
आज
भी
आधी
से
अधिक
आबादी
रोटी,
कपड़ा
एवं
मकान
की
बुनियादी
आवश्यकताएं
पूरी
क्यों
नहीं
कर
पा
रही
है?
क्यों
आपको
भारत
में
भी
1 महीने
के
लाॅकडाउन
के
बाद
सड़कों
पर
चलते
हुए
भूखे
असहाय
लोग
नजर
आ
रहे
हैं?
हम एक और 5 ट्रिलियन
डॉलर अर्थव्यवस्था
की बात
कर रहे
हैं वही दूसरी और
हमारे देश की लगभग
30 से 40% आबादी
अब भी
इतनी उन्नत
नहीं हुई
है कि
वह 1 महीना भी
बिना कमाए
अपना गुजारा
कर सकें।
लेकिन
क्या
जीवन सिर्फ यही का
उद्देश्य
है
की
आवश्यकताएं
बढ़ाते
जाएं,
मनोरंजन
की
दुनिया
में
डूबे
रहें और हम
स्वयं
क्या
है इस पर विचान भी न करें?
क्या केवल भौतिक संसाधन जुटाने के लिए जीवन भर कमाते रहना ही उचित है?
क्या कम संसाधनों में सुख पूर्वक जीवन यापन नहीं किया जा सकता?
क्या कम संसाधनों में सुख पूर्वक जीवन यापन नहीं किया जा सकता?
क्या
हम
प्रकृति
का
दोहन
हमारी
पारिस्थितिकी (ecology)
के
समूल
विनाश
तक
करते
रहेंगे?
इस
समय
आप
घर
पर
बैठे
हुए
हैं,
स्वयं
को
समय
देने
का
इससे
अच्छा
समय
नहीं
हो
सकता।
हालांकि
इन
प्रश्नों
के
बारे
में
कभी
भी
सोचा
जा
सकता
है,
परंतु
जीवन
की
चाल
कोरोना
महामारी
के
कारण
जिस
गति
से
लगभग
शून्य
हुई
है,
यह
सबसे
अच्छा
समय
है
इन
बातों
पर
विचार
करने
के
लिए।
👍👍
ReplyDeleteThanks for the comment
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Good thought it can be apply on life for more happy with limited source and income
ReplyDeleteExactly.
DeleteChange in mentality does not require any resources or incomes.
Thanks for the compliment.
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बहुत सुंदर लेख हैं भाई।
ReplyDeleteThank you!
DeleteVery true
ReplyDeleteThank You Ma'am .
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Absolutely 👍
ReplyDeleteThanks for the comment.
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Nyc
ReplyDeleteThanks for the compliment.
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ReplyDeleteMost powerful people are delint with time of common people and convert it into big profit.
ReplyDeleteWhat you consume will consume you.
ReplyDeleteAgreed.
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Creating trends will cache peoples attention and with this the influencers make money .
ReplyDeleteअति सुंदर मित्र
ReplyDeleteशानदार
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ReplyDeleteआवश्यकता एवं चाह के अंतर को आप को समझना होगा।
ReplyDeleteबहुत खुब👌👌👌👌
Waah! Bahut khoob likha hai👌🏻
ReplyDeleteबिल्कुल सटीक शब्दावली के साथ आज के समय का सत्य।
ReplyDeleteबहुत अच्छा लेख।।।।
Kya baat sundar
ReplyDeleteबहुत खूब दोस्त। विचार बहुत बार मन में आते है। पर इतना खुल के चिंतन और विश्लेषण आपने आज किया है, बहुत अच्छा लगा आपके विचार जान कर।
ReplyDeleteमैं आपकी बातो से सहमत हूं।
-
आपका मित्र,
रचित
बहुत सुंदर विश्लेषण
ReplyDeleteवाह!बहुत अच्छा लिखा आपने����
ReplyDeleteहमारी आवश्यकताएं पूरी करने के लिए तो संसाधन हैं लेकिन, हमारा लालच पूरा करने के लिए नहीं।....very true.....
ReplyDeleteNice thought big b
ReplyDeleteThanks for the compliment.
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Well crafted beautifully explained....🙂
ReplyDeleteThanks for the compliment.
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बहुत बढ़िया, कच्ची मिट्टी को संस्कारों में ढालने से ही सुंदर सभ्यताएं तैयार होती हैं
ReplyDelete👍👍👍🙏🙏🙏Well written
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Exactly true 👍
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