' लाभ' कारी आयुर्वेद।


चन्‍द्रशेखर संगोई

sipmlewords48@gmail.com

कुछ दिनों पहले ही कोरोना की वैक्सीन बनने में हो रही देरी के विषय में जानने के लिए मैंने इंटरनेट पर गहनता से अध्‍ययन किया। मुझे यह जानकारी मिली की किसी भी वैक्सीन अथवा महामारी की दवाई का निर्माण कार्य बहुत ही जटिल अवस्थाओं से गुजरता है। किसी महामारी की वैक्सीन के निर्माण का समय प्राय: 8 से 10 वर्षो में होता है। लेकिन महामारी की आज की परिस्थितियों को देखकर विश्‍व के बहुत से देशो ने साथ मिलकर काम करते हुए लगभग 1 साल के अन्‍दर वैक्सीन खोजने का लश्र्य रखा है।   

 सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के अनुसार किसी भी वैक्‍सीन या दवाई के विकास का क्रम 6 अवस्थाओं में पूरा होता है। वै‍क्‍सीन एंव दवाई के विकास की प्रत्‍येक अवस्‍था का पूरा लेखा-जोखा तैयार किया जाता है। यह लेखा-जोखा भारत में CTRI (क्‍लीनीकल ट्रायल रजिस्‍ट्री) पर दर्ज होता है जो समय समय पर सरकार द्वारा नियत रेगुलेटरी अथॉरिटी CDSCO (सेन्‍ट्रल ड्रग्स स्‍टेर्न्‍डड कन्‍ट्रोल ऑरगेनाइज़ेशन) द्वारा निरिक्षण किया जाता है CDSCO द्वारा प्रत्‍येक अवस्‍था से प्राप्‍त परिणामों का अध्‍ययन किया जाता है। इन 6 अवस्‍थाओं में एक अवस्था होती है क्लीनिकल डेवलपमेंट। क्लीनिकल डेवलपमेंट में पुनः तीन अवस्थाएँ होती हैं। तीनों अवस्थाओं में दवाई या वैक्सीन के ट्रायल मनुष्य पर किए जाते हैं। प्रथम अवस्था में सफल होने पर ही ट्रायल, दितीय अवस्था में किया जाता है एवं इसी तरह तृतीय अवस्था में। तृतीय अवस्था में हजारों लोगों पर दवाई या वैक्सीन के ट्रायल किए जाते हैं। इन ट्रायल्स के उचित परिणामों के आधार पर ही दवाई एवं वैक्सीन को बाजार में उतारने के लिए हरी झंडी दी जाती है।

23 जून को हमारे देश की प्रतिष्ठित कंपनी पतंजलि आयुर्वेदा ने कोरोना वायरस की दवाई कोरोनिल लॉन्‍च की इस पर प्रतिक्रिया देते हुए भारत सरकार के आयुष मंत्रालय ने निर्देश दिए की इस दवाई की मार्केटिंग को रोका जाए। क्योंकि इसके बारे में अभी तक आयुष  मंत्रालय को जानकारी ही नहीं भेजी गई है। ना ही मंत्रालय से इसका अप्रूवल लिया गया है। आयुष मंत्रालय आयुर्वेदिक, योगा, यूनानी, सिद्धा और होम्योपैथी से संबंधित विकास एवं अन्‍य कार्यो के लिए उत्‍तरदायी है। पतंजलि द्वारा बताया गया की दवाई का ट्रायल राजस्‍थान के संस्‍थान NIMS, जयपुर में किया गया। जिस पर राजस्‍थान सरकार ने कहा कि हम से ट्रायल के सम्‍बंधित कोई अनुमति नही ली गई थी। उत्‍तराखंड सरकार भी कह रही है कि दवाई को प्रतिरक्षा बढ़ाने (इम्‍यूनिटी बूस्‍टर) वाली कैटेगिरी में सर्टीफिकेट दिया गया है। अर्थात एक रोग प्रतिराधक क्षमता बढ़ाने वाली दवाई को बाज़ार में कोरोना की दवाई का नाम दिया जा रहा है।

यदि कोरोना वायरस की दवाई सर्वप्रथम आयुर्वेद के माध्यम से बनाई जाए तो इससे बड़ी खुशी की बात क्या होगी। लेकिन इसका यह मतलब कतई नहीं की कोई एक कंपनी इस समय का गलत फायदा उठाए कोई विशेष कंपनी लाभ कमाने के लिए गलत तरीके का उपयोग करे। कोरोनिल दवाई का क्लीनिकल ट्रायल आयुष मंत्रालय और CDSCO की जाँच का विषय है। यदि कोई ट्रायल्‍स किए गए हों और आयुष मंत्रालय इन ट्रायल्‍स से संतुष्ट हो तब ही इसकी बिक्री की जाना उचित होगा। अन्यथा दवाई अपनी निगरानी में ट्रायल करवाना उचित होगा।

पिछले कुछ सालों में यह भी देखने में आया है कि आयुर्वेद के नाम पर बहुत ही लूट मची हुई है। हर कंपनी अपने किसी ना किसी उत्पाद को आयुर्वेदिक घोषित करने में लगी हुई है। जैसे-जैसे भारतीय जनता शिक्षित होती जा रही है। वह अपने जीवन में आयुर्वेद का महत्व समझ रही है। और बाज़ार में आयुर्वेदिक प्रोडक्ट्स की भरमार होती जा रही है। हाँलाकि यदि आप बाजार में उपस्थित विभिन्न आयुर्वेदिक ब्राँड के इनग्रेडिएंट्स (सामग्री) का बारीकी से निरीक्षण करेंगे तो पाएंगे कि बहुत से प्रोडक्ट्स आयुर्वेद के नाम पर केवल छलावा ही कर रहे हैं।

इस छलावे के बढ़ने का मुख्य कारण हमारी जागरूकता की कमी ही है। जिसका फायदा कंपनियों ने भरपूर उठाया है। प्रोडक्ट की अच्छी पैकिंग और उस पर बड़े-बड़े शब्दों में आयुर्वेदिक लिखा देख हम खुश हो जाते हैं और तुरंत ही उसको खरीदने का प्रयास करते हैं। लेकिन यह देखना भूल जाते हैं कि क्या सामान के इनग्रेडिएंट्स (सामग्री ) वाकई आयुर्वेदिक है या नहीं। और यदि है ताे कितनी मात्रा में। एक समझदार ग्राहक चमकदार पैकिंग देख कर सामान नहीं खरीदता है। वह सामान में उपयोग होने वाली प्रत्येक सामग्री और उनकी मात्रा भी परखता है।

इंटरनेट, सोशल मीडिया एवं न्यूज़ चैनलों पर हमारी अत्यधिक निर्भरता विज्ञापनदाता कंपनियों के लिए वरदान साबित हुई है। जहां कई नकली आयुर्वेदिक सामान के विज्ञापनों को दिखाकर, उन्‍हे खरीदने के लिए आपको राजी कर लिया जाता हैं। किसी भी कंपनी का एक ही उद्देश्य होता है ग्राहक की जेब से अधिक से अधिक पैसा निकालना। लेकिन एक जागरूक ग्राहक उचित मूल्य के बदले उचित सामान की पहचान करता है।

यदि मुझसे कोई पूछे कि आपके लिए जीवन की सबसे अनमोल वस्तु क्या है तो मेरा जवाब होगा "मेरा स्वास्थ्य" एक कहावत है कि 'पहला धन नीरोगी काया, दूसरा धन घर में माया'।दुनिया में कोई भी ऐसी वस्तु नहीं है जो हम बिना स्वस्थ रहें खुशी से उपभोग कर सकें। अपनी कार्य कुशलता का, भोजन, घूमने, मनोरंजन, अथवा किसी भी क्रियाकलाप का आनंद लेने के लिए अच्छा स्वास्थ्य  होना जरूरी है। अतः हमारे  स्वास्थ्य की रक्षा हमारा सर्वप्रथम कर्तव्‍य है। इस अनमोल स्वास्थ्य को आप सुरक्षित रखें। कोई भी सामान चाहे वह आयुर्वेदिक पर या किसी भी पद्धति पर आधारित हो, को खरीदने से पहले उसकी पूरी जाँच-पड़ताल अवश्‍य करें। और यदि वह स्वास्थ्य के मानकों पर खरा उतरता है तभी उसका उपयोग करें।


Comments

  1. अति उत्तम
    इसी प्रकार ज्ञानवर्धक तथा जागरूकता बढ़ाने वाले लेख लिखते रहिए यही आशा है

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  2. Fraud is something we should beware of but if someone is really trying hard and coming with results which is helpful for society we should encourage such step and not demotivate any person

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    1. Agreed. We are not against anyone trying. we just want to say that since its a matter of life and death, one should follow all the procedures laid out by the scientific community. And in the case of Patanjali, they themselves agreed that they didn't follow the protocols of clinical trials dilligently.

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  3. Well researched and written...👌👌👌

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    1. Thanks for the appreciation.

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  4. Great and valuable research..👍👍

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  5. This article greatly present the reality of our medical industry.

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    1. Thank you for the comment. We have touched just the tip of some unethical practices in Medicine as well as Fast Moving Consumer Goods (FMCG) companies.

      There is a lot more which we are going to share in times ahead...

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