सेहत का पहला सिद्धांत


चन्‍द्रशेखर संगोई

simplewords48@gmail.com

कुछ साल पहले मैं अपने एक मित्र के घर मेहमान हुआ। उनके घर पर सप्ताह में एक दिन घर के सभी सदस्य उपवास करतेे थे। जिस दिन मैं वहाँ पहुँचा उसके अगले दिन उपवास का दिन था। उपवास के दिन के पहले की रात को उनके घर के सभी सदस्‍यो ने भोजन देर से किेया ताकि‍ कल जल्दी भूख न लगे। मुझे लगा कि सभी सदस्य शायद उपवास के दिन कुछ ना खाते होंगे। अगले दिन मैं क्या देखता हूँ कि, सुबह से उपवास के नाम पर अलग-अलग व्यंजन बनाए जा रहे थे। फल खरीदे गए, चिप्स बनाई गई, मिठाई बनाई गई, खि‍चड़ी बनाई गई। हर एक व्यंजन के खाने का समय निश्चित हो चुका था और सभी सदस्य अपने अपने काम में लग चुके थे। मैं हैरान था! यह कैसा उपवास है?

मैंने कुछ महीनों तक अवलोकन किया तो पाया कि यह स्थिति लगभग संपूर्ण समाज में व्याप्त है जहाँ उपवास के नाम पर महज खाने का मेन्‍यूू ही बदलता है, लेकिन खाया जरूर जाता है।

26 मई 2020 को गुजरात के एक संत श्री प्रहलाद जानी, जो कि चुनरी वाले बाबा जी के नाम से जाने जाते थे, का देहावसान हुआ जो कि लगभग 70 सालों से बिना खाए जीवित थे। संत श्री प्रहलाद जानी जब सुर्खियों में आए तब देश के लगभग 300 वरिष्ठ चिकित्सको की टीम ने एक से अधिक बार उनको कई दिनो तक निरीक्षण में रख कर जाँच की और इस बात की पुष्टि की कि उन्‍हाने कई वर्षों से कुछ नहीं खाया है। उन संत ने अपने जीवन से यही प्रमाण दिया की खान-पान ही केवल जीवन नहीं, यह तो केवल जीवन यात्रा का एक उपयोगी साधन मात्र है।

एक कहावत है कि, हमें जीने के लिए खाना चाहिए ना कि खाने के लिए जीना चाहिए। वर्तमान समय में इसके उलट व्यक्ति ने अपनी दिनचर्या ऐसी बना ली है, मानो वह केवल खाने के लिए ही जी रहा हो। खान-पान की ज्यादती जाने अनजाने में हम स्वयं के साथ कर रहे हैं। जहाँ-तहाँ देखो केवल खान-पान की ही चर्चा है, मन-मष्तिस्क में खान-पान के विचार ऐसे घूमते रहते है जैसे किसी रोगी के मन मे हमेशा रोग के विचार। शरीर बिना भोजन के जीवित नहीं रह सकता यह यथार्थ सत्य है। किंतु केवल पूरा जीवन इसी विषय पर केन्द्रित कर देना भी उचित नहीं है। वैसे खाना बुरी बात नहीं है क्योंकि सामान्‍य मनुष्‍य के लिए खाये बिना अधिक समय जीवित रहना संभव नहीं है। भोजन शरीर का ईंधन है। हमारे शरीर को चलाने के लिए वायु एवं जल के बाद यह तीसरी सबसे महत्वर्पूण आवश्यकता है। परन्‍तु यह जानना अति आवश्‍यक है कि भोजन की कितनी मात्रा शरीर के लिए उपयोगी है।

संस्कृत का बहुत प्रसिद्ध लघु सूत्र हैअति सर्वत्र वर्जयेत्जिसका हिंदी शब्‍दार्थ है किअति करने से हमेशा बचना चाहिए', अति का परिणाम हमेशा हानिकारक होता है।

यदि आपके पास एक ऐसा वाहन है जिससे यात्रा करते समय प्रत्येक किलोमीटर पर ईंधन की आवश्यकता लगे तो आपको यात्रा में अत्यधिक व्यवधान आएगा, आप सदैव ईंधन की व्यवस्‍था में ही लगे रहेगें और यात्रा के उद्देश्‍य हीईंधन की व्यवस्थाहो जायेगा। और इस व्‍यवस्‍था में यात्रा का मूल उद्देश्‍य भुला दिया जाएगा। क्या आप ऐसी यात्रा करना पंसद करेंगे? क्‍या यही परिस्थिती मनुष्‍य के साथ निर्मित नही हो गयी है?

हम साधारणतया पेट खाली होने को भूख लगना मानते हैं लेकिन शरीर विज्ञान शोधकर्ता कहते हैं कि जब पेट खाली होता है तो शरीर स्वयं की मरम्‍मत (Heal) करने में लग जाता है। उनके अनुसार भूख लगना वह प्रक्रिया है जिसमें शरीर की ऊर्जा कम पड़ने लगती है और हमें कमज़ोरी महसूस होने लगती है। शरीर भोजन को पचा कर स्वयं के लिए शक्ति प्राप्त करता है एवं बाकी बचे हुए समय में स्वयं की वृद्धि एवं मरम्‍मत करता है। शरीर के पास अपने रोगों को ठीक करने की विशि‍ष्‍ट तकनीक होती है। लेकिन इसके ठीक तरह से काम करने के लिए कुछ घंटो के लिए पेट का खाली होना आवश्यक है। अन्यथा शरीर प्रत्येक समय भोजन को पचाने का ही कार्य करता रहेगा और शरीर की वृद्धि एवं रोगों से लड़ने की क्षमता कम होती जायेगी। असयंमित खान-पान की आदतें, हमारे शरीर को तो नुकसान पहुँचाती ही है साथ ही मानसिक तनाव भी उत्‍पन्‍न कर हमारी कार्य दक्षता को कम करती है। लंबे समय तक इन आदतो पर ध्यान ना देने पर उम्र बढ़ने के साथ शरीर में डायबि‍टीज, उच्‍च एवं निम्‍न रक्‍तचाप, मोटापा, ह्रदय रोग, कैंसर जैसी बहुत सी गंभीर बीमारियाँ होने का खतरा अत्‍यधिक बढ़ जाता है, जो कि हमारे पारिवारिक, सामाजिक और आर्थिक जीवन को तहस-नहस तक कर सकती है।

श्री कृष्ण ने श्रीमद्भागवत गीता में भी अधिक भोजन वर्जित बताया है। उन्होने कहा है कि

       नात्यश्नतस्तु योगोऽस्ति चैकान्तमनश्नतः श्रीमद्भागवतगीता6.16

हे अर्जुन! यह योग तो बहुत खाने वाले का, बिलकुल खाने वाले का ही सिद्ध होता है

भगवान बुद्ध भी अपने भिक्षुओं को दिन में एक समय ही भोजन करने का आग्रह करते थे ताकि भिक्षुओं का शरीर उनके लक्ष्य में बाधा न बने।

सप्ताह में एक दिन बिना आहार के रहना अथवा दो-तीन दिन में एक समय का भोजन छोड़ देना या हमारे खाने की क्षमता से कम खाना शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने, मस्तिष्क की तीव्रता में वृद्धि एंव शरीर की मरम्‍मत के लिए अत्यंत ही आवश्‍यक है।

मेरे एक मित्र जो कि हमेशा ही ऊर्जावान जीवन जीते हैं, भले ही वे कई दिनों तक रोजाना 12 से 15 घंटे कार्य करते रहें, उनसे मैंने जब यह प्रश्न किया की आप अपना एनर्जी लेवल कैसे बनाए रखते हैं? जो दो-तीन महत्‍वपूर्ण बाते उन्होंने मुझे बतलाई उनमें से एक यह थी कि वह समय-समय पर कुछ दिनों के लिए बहुत ही कम भोजन करते हैं। जिससे उनका शरीर स्‍वयं को ठीक कर ऊर्जावान बना लेता है और मानसिक प्रसन्नता भी बढ़ती है। उन्होंने बतलाया कि ऐसा करने से उनके किसी भी लक्ष्य में शरीर बाधा नहीं बनता और अपने सभी कार्य बहुत आसानी से अधिक ऊर्जा के साथ, जीवंत होकर हर्षोल्‍लास में करते हैं। मैं यह सुनकर हैरान रह गया कि कुछ दिन पहले ही उन्होंने 8 दिन तक लगातार भोजन में सुबह-शाम केवल एक-एक गिलास दही ग्रहण किया था।

आपके जीवन का उद्देश्य चाहे जो हो उस उद्देश्य की ओर सतत् रूप से आगे बढ़ते रहने के लिए और शरीर को स्वस्थ, सुंदर एंव रोग मुक्‍त बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है कि आप खान-पान की अपनी आदतों को शरीर विज्ञान के अनुसार बदले।

 

 

 

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