जीवन की अपूर्णता का अंत वर्तमान में है।


- चन्‍द्रशेखर संगोई

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आए दिन लोगो से चर्चा के दौरान जब भी यह  पूछता हूँ की आपका जीवन कैसा चल रहा है”, तो जवाब अधिकांशत: नकारात्‍म लहजे में ही मिलता है;जीवन में कुछ खास नहीं चल रहा बस कट रहा है”, इसी तरह के अन्‍य जवाब मिलते है। पहले इसलिए परेशान थे कि जीवन में बहुत भाग-दौड़ है, और जब कोरोना महामारी फैलने के कारण हुए लॉकडाउन के बाद जिंदगी की भाग-दौड़ पर कहीं अल्‍पविराम लगा तो कहीं पूर्णविराम भी लगा, तब भी वे सभी लोग खुश दिखाई नहीं दिये।

लोग जीवन से क्‍या चाहते हैं, क्‍या वे खुद यह बात जानते है? हम लोग जीवन की सुंदरता को क्‍यों नहीं देख पा रहे हैं? शांति महसूस क्‍यों नहीं कर पा रहें हैं?

आप सृष्टि के निर्माता को जिस भी नाम से जाने, आप उसे भगवान कहें, गॉड कहें, प्रकृति कहें या और कुछ, उसने सृष्टि को इसी तरह से बनाया है कि उसमें कोई भी कमी नहीं है। वह अपने आप में परिपूर्ण है, अपने आप में सुंदर है, जिसमें आपका जीवन भी शामिल है। हमारे जीवन की सभी आवश्यकताओं जैसे हवा, पानी, भोजन आदि को प्रकृति ने मुफ्त में पूरा किया है। उदाहरण के लिए प्रकृति ऑक्सीजन देने के लिए अस्‍पतालो की तरह पैसे वसूल नही करती है, न ही 20 रूपये प्रति लीटर के हिसाब से पानी बरसाती है, न ही सूर्य के प्रकाश के लिए हमें कोई बिल भरना पड़ता है। सोचिये यदि ये सभी आवश्‍यक सुविधायेँ सशुल्‍क होती तो?

हमारा मस्तिष्क इस रूप में विकसित है कि वह हमेशा भूतकाल या भविष्यकाल को देखता है। इसी कारण हमें अपूर्णता की भावना हमेशा घेरे रहती है। यही अपूर्णता की भावना जीवन की सुंदरता को हमसे दूर कर देती है।

पाश्‍चात्‍य जीवन शैली ने हम पर और अधिक नकारात्मक प्रभाव डाले हैं अपूर्णता की इस भावना को और अधिक गहरा कर दिया है। साथ ही यह विश्वास भी दिलाया है कि इस अपूर्णता को पूर्ण करने के लिए आपको अधिक से अधिक धन कमाना होगा, अधिक से अधिक भौतिक वस्तुओं को प्राप्‍त करना होगा। अधिक से अधिक सुविधाएँ प्राप्‍त करने की जीवन शैली ने हमारे मन को चारों ओर से इस तरह से घेर लिया है कि हम जीवन की अन्‍य दिशाओं में सोचने के लिए समय ही नहीं निकाल पा रहें हैं। और इन्‍ही अर्जित संसाधनो में जीवन की सुंदरता तलाश रहें है। लेकिन इसके विपरित इस तलाश में हम जितने आगे बढ़ते जाते हैं, जीवन की खुशीयाँ और सुंदरता उतनी ही घटती जाती है। सिर्फ बॉयकाट चाइना मुवमेंट से कुछ नहीं होगा, हमें भोगवादी पाश्‍चात्‍य संस्‍कृति को भी छोड़ना पड़ेगा।

यदि आप जीवन की सुंदरता को देखना चाहते हैं तो केवल कुछ सप्ताह के लिए, इस विधि का प्रयोग करके जरूर देखें। यह विधि इतनी कारगर है कि आप इसके परिणामो को देखकर हैरान रह जायेगें। आप जीवन की आवश्‍यकताओं और बाहरी आकर्षण में अंतर भी स्‍वयं करना सीख जायेगें। आपको किसी और पर अपने निर्णयों के लिए आश्रित नहीं होना पड़ेगा।

आप अपने मन के विचारो पर नज़र रखना शुरू करें। जब आप ऐसा करेगें तो पाएँगे की मन हमेशा ही भूत या भविष्य में रहता है। मन में विचार कुछ इस तरह के होंगे कि यह वस्तु मिल जाए, वह काम हो जाए, फलाँ व्यक्ति से संबंध बन जाता, फलाँ इच्‍छा पूरी हो जाती आदि  तब अपने आप से कहें मैं पूर्ण हूँ, मेरे जीवन में कोई भी कमी नहीं है, मैं खुश हूँ, मुझे खुशी के लिए किसी भी भौतिक वस्तु की आवश्‍यकता नहीं है। कोई ऐसी वस्तु नहीं है जो मुझे पूर्ण कर सकती है, क्योंकि मैं अपने आप में ही पूर्ण हूँ।

 आप सोच रहे होंगे कि ऐसा कैसे संभव है कि हमको हैप्पीनेस के लिए किसी बाहरी चीज की कोई आवश्यकता नहीं है?


अब तक के आपके जीवन में आपकी बहुत सी इच्छाएं रही होंगी और उनमें से बहुत सी इच्छाएं पूरी हो गई होंगी। प्रत्येक इच्छा पूरी होने के बाद एक नई इच्छा उत्पन्न हो जाती है। और यह क्रम निरंतर चलता रहता है। इससे तो यही सिद्ध होता है कि हम अपनी खुशी के लिए इतनी मेहनत करके जिन चीजों को एकत्र कर रहे हैं, वे हमारी समस्या का असली समाधान नहीं हैं। अन्यथा इनके मिल जाने पर पुनः नई इच्छाएं कैसे उत्पन्न होती?

एक और विचार आपके मन में आ सकता है कि मैं आपसे सब कुछ त्याग करने को या बहुत ही कम में गुजारा करने के लिए कह रहा हूँ। नहीं, ऐसा बिल्कुल नहीं है। प्रश्न यह नहीं है कि आपके पास कितना धन है या कितने संसाधन उपलब्ध है। प्रश्न यह है कि जितना है, और अभी तक के जीवन में जितना पाया है क्‍या उसके बावजूद भी जीवन में सुंदरता, शांति और खुशी है?

यदि आप कुछ सप्ताह के लिए इस विधि का उपयोग दैनिक जीवन में करने लगेंगे, तो आप पाएँगे कि मन के विचार धीरे-धीरे कम होने लगे हैं, और आप वर्तमान में रहने लगे हैं। आप जितना अधिक वर्तमान में रहने लगेंगे आपको जीवन उतना ही सुंदर और शांत लगने लगेगा। आपकी कार्य दक्षता में भी अत्‍यधिक वृद्धि होगी।

जैसे यदि किसी व्‍यक्ति ने कभी कोई मीठी चीज न खाई हो, उसे बोलकर मीठा स्‍वाद नहीं समझाया जा सकता। उस स्वाद को समझने के लिए कोई मीठी चीज़ खाकर ही अनुभव करना होगा। वैसे ही जब तक आप वर्तमान में रहने के अभ्‍यस्‍थ नहीं होंगे, और केवल धन एवं भौतिक संसाधनो के द्वारा जीवन की सुंदरता खोजेंगे जीवन की असली सुंदरता से अंजान ही रहेगें।

Comments

  1. Superb line.

    We think always past n future.

    We never think present time

    If really we'll think about present then there will be no need of saying *lagi padi he or kat rhi he*

    Superb article

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    1. Thanks for the compliment

      We just have to be aware of and notice the present. We become sad or worried only when we think either about the past experiences or undesirable future events.

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  3. बहुत शानदार लेख

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    1. बहुत बहुत धन्‍यवाद।
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  6. सही बात है जीजा श्री मानव को वर्तमान में जीने की आदत बनानी ही होगी

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    2. बुद्ध ने कहा है असली जीवन इसी क्षण में है।
      आपका बहुत बहुत धन्‍यवाद।
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  10. बहुत प्रभावशाली लेख,श्रेष्ठ विचार।

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